Raja Aur Chhotu Ki Khani // moral kahani for cartoon video
🌟 छोटू और सच्चाई का दीपक 🌟
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में छोटू नाम का एक प्यारा, समझदार और जिज्ञासु बच्चा रहता था। उसकी उम्र तो केवल 10 साल थी, लेकिन उसके मन में बड़े-बड़ों जैसी समझ और विचार थे।
छोटू अपने माता-पिता के साथ एक छोटे से घर में रहता था। उसके पिता किसान थे और माँ घर का काम करती थीं। छोटू स्कूल जाता था, लेकिन सबसे ज़्यादा उसे कहानियाँ सुनना और सच्चाई के बारे में जानना पसंद था।
एक दिन गाँव के प्रधान ने सब बच्चों को बुलाया और कहा, “हमारे गाँव में एक रहस्यमय दीपक है। कहते हैं, जो बच्चा सच्चाई के रास्ते पर चलेगा, वही उस दीपक को पा सकेगा। और वह दीपक जब जलता है, तो जीवन में सच्चाई, ज्ञान और उजाला भर जाता है।”
छोटू के मन में जिज्ञासा और जोश जाग उठा। उसने अपने माता-पिता से पूछा, “क्या मैं भी उस दीपक को खोजने जा सकता हूँ?”
माँ ने मुस्कराकर कहा, “अगर तुम सचमुच सच्चे मन से सच्चाई का दीपक ढूँढना चाहते हो, तो जाओ बेटा। लेकिन याद रखना, रास्ते में तुम्हारी परीक्षा होगी – झूठ, लालच, डर और क्रोध तुम्हें भटकाने की कोशिश करेंगे।”
छोटू ने एक छोटा सा थैला लिया, उसमें रोटी, पानी की बोतल और दादी का दिया हुआ लकड़ी का खिलौना रखा – जो हमेशा उसकी रक्षा करता था।
पहले दिन ही उसे एक सुनसान रास्ता मिला, जहाँ एक आदमी बैठा था। उसने छोटू से कहा, “बेटा, तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो?”
छोटू बोला, “मैं सच्चाई के दीपक की खोज में जा रहा हूँ।” आदमी मुस्कराया और बोला, “तब तुम्हें झूठ की घाटी से गुजरना होगा।”
छोटू अपनी यात्रा में आगे बढ़ता गया। अब वह एक पहाड़ी इलाके में पहुँचा, जहाँ रास्ते बहुत कठिन थे। चढ़ाई तीखी और पत्थर फिसलन वाले थे।
रास्ते में उसे एक लड़का मिला – नाम था 'राजन'। राजन बोला, “मैं भी सच्चाई के दीपक की खोज में हूँ। क्यों न हम साथ चलें?” छोटू ने मुस्कराकर कहा, “ज़रूर! जब दो लोग सच्चे इरादे से चलें, तो मंज़िल जल्दी मिलती है।”
दोनों साथ चलने लगे। लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें एक औरत मिली जो कह रही थी, “मेरे बेटे को साँप ने काट लिया है, क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो?”
राजन बोला, “हमारे पास समय नहीं है! हमें दीपक की खोज करनी है।” लेकिन छोटू ठहर गया और बोला, “अगर हम किसी की मदद नहीं कर सकते, तो दीपक किस काम का?”
वह औरत उन्हें पास की झोपड़ी तक ले गई जहाँ बच्चा कराह रहा था। छोटू ने पास की जड़ी-बूटियों से मरहम लगाया जो उसने अपनी दादी से सीखा था। थोड़ी देर में बच्चा ठीक हो गया।
औरत ने रोते हुए छोटू को गले लगाया और कहा, “तू ही सच्चा दीपक है बेटा।” फिर एक बार आसमान में हल्का सा उजाला चमका – सच्चाई की एक और किरण जल उठी।
छोटू और राजन फिर साथ आगे बढ़े। लेकिन अब राजन के मन में ईर्ष्या आने लगी। वह सोचने लगा, “सारी प्रशंसा तो छोटू को मिल रही है। दीपक अगर मिला तो शायद उसे ही मिल जाएगा।”
रात को जब वे एक पेड़ के नीचे सो रहे थे, राजन ने चुपके से छोटू के थैले से दादी का दिया हुआ खिलौना निकाल लिया।
सुबह छोटू उठा तो देखा – खिलौना नहीं है। लेकिन उसने किसी पर शक नहीं किया। बस बोला, “शायद ये मेरी परीक्षा है। मेरे पास जो है, वही लेकर आगे बढ़ता हूँ।”
राजन को बहुत शर्म आई लेकिन वह चुप रहा। अगले ही मोड़ पर उन्हें एक नदी मिली – बहुत तेज बहती हुई। उस पर कोई पुल नहीं था।
छोटू ने कहा, “हम एक नाव बनाते हैं।” और पास की लकड़ियाँ इकट्ठा करने लगा। लेकिन राजन ने कहा, “नहीं, मैं तैरकर पार कर लूँगा।”
राजन नदी में कूद गया – लेकिन बहाव बहुत तेज था। वह डूबने लगा। छोटू ने बिना कुछ सोचे उसे बचाने के लिए छलांग लगा दी।
किसी तरह वह राजन को किनारे तक लाया। राजन रो पड़ा – “मैंने तुम्हारा खिलौना चुरा लिया और तुमने फिर भी मेरी जान बचाई?”
छोटू मुस्कराया – “गलतियाँ हम सबसे होती हैं, लेकिन सच्चाई उन्हें स्वीकार करने में है।”
तभी आकाश में ज़ोरदार बिजली चमकी और एक हल्की रोशनी आसमान से उतरी – एक सुनहरा दीपक, जो उनके सामने आकर हवा में तैरने लगा।
दीपक से एक आवाज़ आई – “छोटू! तुमने दया, करुणा, ईमानदारी और धैर्य से अपनी परीक्षा पास की है। यही सच्चाई का दीपक है – जो भीतर जलता है, बाहर नहीं।”
छोटू हाथ जोड़कर बोला, “मुझे अब समझ में आ गया – सच्चाई कोई चीज़ नहीं, बल्कि एक रास्ता है।”
राजन ने भी माफ़ी माँगी और सच्चाई की राह पर चलने की शपथ ली।
दोनों दीपक लेकर गाँव लौटे। लेकिन गाँव वालों ने देखा – दीपक तो छोटू के हाथ में है, लेकिन प्रकाश पूरे गाँव में फैल गया है।
तभी गाँव के प्रधान बोले, “आज हमने समझा – असली उजाला उस दिल में होता है, जो दूसरों के लिए जलता है।”
उस दिन से छोटू को गाँव में ‘दीपपुत्र’ कहा जाने लगा और उसकी कहानियाँ दूर-दूर तक फैल गईं।
कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई – क्योंकि छोटू अब हर उस गाँव में जा रहा था जहाँ अंधकार और झूठ फैला हुआ था… और वहाँ सच्चाई का दीपक जला रहा था।
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