⛷️बच्चों के लिए 5 नैतिक कहानियाँ // Hindi moral Story //
बच्चों के लिए 5 नैतिक कहानियाँ
1. प्यासा कौवा 🐦⬛और जादुई कंकड़
एक घने जंगल के बीच, एक बड़े बरगद के पेड़ पर कालू नाम का एक बहुत ही समझदार कौवा रहता था। कालू अपनी बुद्धिमत्ता के लिए पूरे जंगल में जाना जाता था, लेकिन उस वर्ष गर्मी कुछ ज़्यादा ही पड़ रही थी। सूरज आसमान में आग का गोला बनकर चमक रहा था, और नदियाँ, तालाब, और पोखर सब सूख चुके थे। जंगल के सभी जानवर पानी की एक-एक बूँद के लिए तरस रहे थे। कालू भी बहुत प्यासा था। उसकी चोंच सूख गई थी, और गला काँटेदार लग रहा था। वह घंटों तक पानी की तलाश में इधर-उधर उड़ता रहा। उसकी आँखें हर पत्ते, हर टहनी, और हर ज़मीन पर पानी का निशान ढूँढ़ रही थीं, लेकिन कहीं भी उसे पानी नहीं दिख रहा था। वह थक कर चूर हो गया था, और उसे लग रहा था कि अब उसकी उड़ान बस खत्म होने ही वाली है।
तभी, दूर एक खेत के पास उसे कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। जब वह और पास गया, तो उसने देखा कि वहाँ एक मिट्टी का घड़ा रखा था, और उसमें थोड़ा-सा पानी था। कालू की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तेज़ी से उस घड़े की ओर लपका। लेकिन जब वह घड़े के पास पहुँचा, तो उसकी खुशी निराशा में बदल गई। पानी घड़े में इतना नीचे था कि उसकी चोंच वहाँ तक पहुँच ही नहीं पा रही थी। कालू ने कई बार कोशिश की। उसने अपनी गर्दन खूब नीचे की, अपने पंजों से घड़े को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ। वह बहुत निराश हो गया।
एक पल के लिए उसने सोचा कि अब क्या करें? क्या वह हार मान ले और अपनी प्यास से ही तड़पता रहे? लेकिन कालू हार मानने वालों में से नहीं था। वह जानता था कि संकट के समय दिमाग शांत रखना चाहिए। उसने अपने चारों ओर देखा। पास में ही एक बाड़ के नीचे छोटे-छोटे कंकड़ों का ढेर लगा हुआ था। अचानक कालू के दिमाग में एक विचार आया। उसने सोचा, "अगर मैं इन कंकड़ों को घड़े में डालूँ, तो क्या पानी ऊपर आ सकता है?" यह एक जोखिम भरा विचार था, लेकिन उसके पास और कोई रास्ता नहीं था।
कालू ने तुरंत काम शुरू कर दिया। उसने एक-एक करके अपनी चोंच में कंकड़ पकड़े और उन्हें घड़े में डालना शुरू किया। पहला कंकड़ गिरा - "छप!" कुछ नहीं हुआ। दूसरा कंकड़ गिरा – "छप!" कुछ भी नहीं। कालू ने हार नहीं मानी। वह जानता था कि धैर्य बहुत ज़रूरी है। वह लगातार कंकड़ डालता रहा। धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे, पानी का स्तर ऊपर आने लगा। पहले इंच भर, फिर दो इंच, फिर और ऊपर। कालू को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी मेहनत रंग ला रही थी।
वह तब तक कंकड़ डालता रहा जब तक कि पानी उसकी चोंच की पहुँच में नहीं आ गया। अंत में, कालू ने भरपेट पानी पिया। उसकी प्यास बुझ गई, और उसे लगा जैसे उसे एक नया जीवन मिल गया हो। उसने अपनी बुद्धिमत्ता और धैर्य पर गर्व महसूस किया। उसने सीखा कि अगर हम किसी समस्या का सामना करें और हार न मानें, तो हमें हमेशा कोई न कोई रास्ता मिल ही जाता है। वह खुशी-खुशी अपने पेड़ की ओर उड़ गया, और रास्ते में उसने जंगल के अन्य जानवरों को भी अपनी कहानी सुनाई, ताकि वे भी समझ सकें कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। उस दिन के बाद, कालू की कहानी पूरे जंगल में फैल गई और वह सभी के लिए प्रेरणा बन गया।
नैतिक शिक्षा: जहाँ चाह, वहाँ राह। कठिनाइयों का सामना हिम्मत और सूझबूझ से करना चाहिए।
2. 👷♀️किसान और उसके झगड़ालू बेटे
एक समय की बात है, एक गाँव में एक वृद्ध किसान रहता था जिसका नाम धर्मपाल था। धर्मपाल बहुत मेहनती और नेक दिल इंसान था, लेकिन उसे अपने चार बेटों को लेकर हमेशा चिंता रहती थी। उसके बेटे आपस में कभी नहीं बनती थी। वे हर छोटी बात पर लड़ते-झगड़ते रहते थे। कभी खेत में काम करते हुए, कभी घर के काम में, और कभी तो बस बिना बात के भी आपस में लड़ने लगते थे। उनकी लड़ाई-झगड़ों से गाँव वाले भी परेशान थे, और धर्मपाल को भी अक्सर शर्मिंदा होना पड़ता था। उसने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की, उन्हें एक साथ मिलकर रहने की सलाह दी, लेकिन सब व्यर्थ। उनके बीच की कड़वाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। धर्मपाल को डर था कि अगर वे ऐसे ही लड़ते रहे, तो उनका घर और परिवार बिखर जाएगा।
धर्मपाल बूढ़ा हो रहा था और उसकी तबीयत भी अक्सर खराब रहने लगी थी। उसे चिंता थी कि उसके जाने के बाद उसके बेटों का क्या होगा। एक दिन, जब वह बिस्तर पर लेटा था और उसे लगा कि शायद अब उसका अंत निकट है, उसने अपने सभी बेटों को अपने पास बुलाया। बेटे एक-दूसरे से मुँह फुलाए हुए आए, जैसे कि वे अभी भी किसी बात पर नाराज़ हों। धर्मपाल ने उन्हें अपने पास बैठने को कहा। बेटों को लगा कि पिताजी कोई अंतिम उपदेश देंगे।
धर्मपाल ने अपने एक बेटे से कहा, "बेटा, जाओ और जंगल से लकड़ियों का एक मोटा गट्ठा ले आओ।" बेटा गया और कुछ देर बाद लकड़ियों का एक मोटा गट्ठा लेकर आया, जिसमें बहुत सारी लकड़ियाँ एक साथ बंधी हुई थीं। धर्मपाल ने गट्ठे को देखा और अपने सबसे बड़े बेटे से कहा, "तुम इस गट्ठे को तोड़ो।" सबसे बड़े बेटे ने अपनी पूरी ताकत लगाई, उसने खूब ज़ोर लगाया, लेकिन वह गट्ठे को तोड़ नहीं पाया। लकड़ी का गट्ठा मज़बूत था और हिल भी नहीं रहा था।
फिर धर्मपाल ने दूसरे बेटे से कहा, "अब तुम कोशिश करो।" दूसरे बेटे ने भी अपनी पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन वह भी असफल रहा। तीसरे और चौथे बेटे ने भी एक-एक करके कोशिश की, लेकिन कोई भी उस गट्ठे को तोड़ नहीं पाया। वे सभी थक हार कर बैठ गए। वे हैरान थे कि एक साधारण सा लकड़ी का गट्ठा उनसे टूट क्यों नहीं रहा था।
तब धर्मपाल मुस्कुराया। उसने धीरे से उस गट्ठे को अपने हाथों से खोला, और लकड़ियाँ अलग-अलग हो गईं। उसने उनमें से एक पतली सी लकड़ी उठाई और अपने सबसे बड़े बेटे को दी। "अब इसे तोड़ो," उसने कहा। बड़े बेटे ने बिना किसी प्रयास के उसे तुरंत तोड़ दिया। फिर धर्मपाल ने बाकी बेटों को भी एक-एक लकड़ी दी, और उन्होंने भी उसे आसानी से तोड़ दिया।
धर्मपाल ने गहरी साँस ली और शांत आवाज़ में कहा, "देखो मेरे बेटों, जब ये लकड़ियाँ एक साथ बंधी हुई थीं, तो कोई भी इन्हें तोड़ नहीं पाया। तुम सबने अपनी पूरी ताकत लगाई, लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन जब ये अलग हो गईं, तो एक बच्चे के लिए भी इन्हें तोड़ना आसान था। ठीक इसी तरह, जब तुम सब एक साथ रहोगे, एक-दूसरे का साथ दोगे, तो कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता। कोई भी बाहरी शक्ति तुम्हें तोड़ नहीं पाएगी। लेकिन अगर तुम आपस में लड़ते रहोगे, एक-दूसरे से अलग रहोगे, तो दुश्मन तुम्हें आसानी से हरा देंगे और तुम्हारा घर बिखर जाएगा।"
बेटों ने अपने पिताजी की बात को ध्यान से सुना। उनके चेहरों पर पश्चाताप का भाव था। उन्हें पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा और पहली बार उनके मन में एकता की भावना जागी। उन्होंने अपने पिताजी से वादा किया कि वे अब कभी नहीं लड़ेंगे और हमेशा एक साथ रहेंगे। उस दिन के बाद, धर्मपाल के बेटों ने कभी लड़ाई नहीं की। वे एक साथ काम करते थे, एक-दूसरे की मदद करते थे, और उनका परिवार पहले से ज़्यादा खुशहाल हो गया। धर्मपाल भी अपने बेटों को देखकर सुकून से मर सका, यह जानते हुए कि वे अब सुरक्षित हैं क्योंकि वे एक साथ हैं।
नैतिक शिक्षा: एकता में ही बल है। मिलजुलकर रहने से हम ज़्यादा मज़बूत बनते हैं और किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।
3. लालची कुत्ता🐕 और प्रतिबिंब का भ्रम
एक गाँव में एक भूखा कुत्ता था जिसका नाम टॉमी था। टॉमी एक आवारा कुत्ता था और उसे अक्सर खाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता था। एक दिन, उसे गाँव के बाहर एक कूड़ेदान में एक बड़ी और स्वादिष्ट हड्डी मिली। हड्डी देखकर टॉमी की बाँछें खिल गईं। वह बहुत खुश हुआ क्योंकि उसे आज भरपेट खाना मिलने वाला था। उसने हड्डी को अपनी मुँह में दबाया और सोचा कि वह इसे किसी शांत और सुरक्षित जगह पर ले जाकर आराम से खाएगा।
अपनी हड्डी लेकर टॉमी खुशी-खुशी एक पुल की ओर चल पड़ा। यह पुल एक छोटी सी नदी के ऊपर बना था। जब वह पुल के ठीक बीच में पहुँचा, तो उसने गलती से नदी में अपनी परछाई देखी। नदी का पानी साफ और शांत था, और उसमें उसकी अपनी परछाई बहुत साफ दिख रही थी। टॉमी ने पहले कभी अपनी परछाई पर इतना ध्यान नहीं दिया था।
जैसे ही उसने नदी में देखा, उसे लगा कि वहाँ कोई और कुत्ता है! और सिर्फ कोई और कुत्ता ही नहीं, बल्कि उस कुत्ते के मुँह में उससे भी बड़ी और ज़्यादा स्वादिष्ट हड्डी थी! टॉमी की आँखें लालच से चमक उठीं। उसे लगा, "अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। मेरे पास एक हड्डी तो है ही, अगर मैं उस दूसरे कुत्ते से भी उसकी हड्डी छीन लूँ, तो मेरे पास दो-दो हड्डियाँ हो जाएँगी! मैं तो आज मालामाल हो जाऊँगा!"
टॉमी का मन लालच से भर गया। उसने अपनी ही हड्डी को भूलकर उस "दूसरे कुत्ते" की हड्डी पर कब्ज़ा करने की सोची। उसने तुरंत उस परछाई वाले कुत्ते पर भौंकने का फैसला किया, ताकि वह उसे डराकर उसकी हड्डी छीन सके। बिना कुछ सोचे-समझे, उसने अपना मुँह खोला और ज़ोर से "भौंक!" किया। जैसे ही टॉमी ने भौंकने के लिए अपना मुँह खोला, उसके मुँह में दबी हुई उसकी अपनी स्वादिष्ट हड्डी "छपाक" की आवाज़ के साथ नदी के गहरे पानी में गिर गई।
हड्डी गिरते ही टॉमी चौंक गया। उसने नदी में देखा, लेकिन हड्डी तेज़ी से डूबती चली गई और आँखों से ओझल हो गई। अब नदी में कोई दूसरा कुत्ता नहीं था और न ही कोई दूसरी हड्डी। वहाँ बस पानी की लहरें थीं। टॉमी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे समझ आया कि उसने जिस "दूसरे कुत्ते" को देखा था, वह तो उसकी अपनी ही परछाई थी। लालच के चक्कर में उसने अपनी पास मौजूद अच्छी-खासी हड्डी भी गँवा दी थी।
टॉमी बहुत उदास हो गया। वह भूखा का भूखा रह गया और उसके पास अब खाने के लिए कुछ भी नहीं था। वह खाली पेट और खाली मुँह लिए पुल पर खड़ा रहा। उसे अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ। उसने सोचा कि काश उसने लालच न किया होता और अपनी मिली हुई हड्डी से ही संतुष्ट रहता। उस दिन के बाद, टॉमी ने सीखा कि लालच हमेशा नुकसानदायक होता है। हमें जो कुछ भी मिलता है, उसी में संतोष करना चाहिए, क्योंकि ज़्यादा की चाह में हम अक्सर अपने पास मौजूद चीज़ें भी खो देते हैं। उसने हमेशा के लिए इस पाठ को याद रखा और फिर कभी लालच नहीं किया।
नैतिक शिक्षा: लालच बुरी बला है। जो हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए। ज़्यादा की चाह में हम अक्सर अपना सब कुछ खो देते हैं।
4. घमंडी खरगोश 🐇और धैर्यवान कछुआ
एक हरे-भरे जंगल में, जहाँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे और एक साफ नदी बहती थी, वहाँ एक तेज़ तर्रार खरगोश रहता था जिसका नाम चीकू था। चीकू अपनी तेज़ दौड़ने की क्षमता पर बहुत घमंड करता था। वह जंगल के सभी जानवरों को चुनौती देता था और हमेशा अपनी गति का बखान करता रहता था। वह अक्सर धीमी गति से चलने वाले जानवरों का मज़ाक उड़ाता था, खासकर एक कछुए का जिसका नाम धीरू था। धीरू स्वभाव से शांत और विनम्र था, लेकिन वह बहुत दृढ़निश्चयी और मेहनती था। चीकू अक्सर धीरू को देखकर हँसता था और कहता था, "अरे धीरू भाई, तुम तो इतनी धीमी चाल चलते हो कि लगता है तुम कभी कहीं पहुँच ही नहीं पाओगे! मेरे बराबर तो तुम कभी दौड़ ही नहीं पाओगे!"
एक दिन, चीकू ने फिर से धीरू का मज़ाक उड़ाया और उसे दौड़ की चुनौती दे डाली। धीरू ने सोचा, "चीकू इतना घमंडी है, उसे एक सबक सिखाना ज़रूरी है।" उसने चुनौती स्वीकार कर ली। पूरे जंगल में यह खबर फैल गई कि खरगोश और कछुए के बीच दौड़ होने वाली है। सभी जानवर दौड़ देखने के लिए उत्साहित थे। लोमड़ी को रेफरी बनाया गया, और बंदर ने हरी झंडी दिखाई।
दौड़ शुरू हुई! चीकू ने तुरंत एक ज़ोरदार छलांग लगाई और बिजली की गति से आगे बढ़ गया। वह देखते ही देखते धीरू से बहुत आगे निकल गया। धीरू ने अपनी धीमी और स्थिर गति से चलना शुरू किया। वह जानता था कि वह चीकू जितना तेज़ नहीं दौड़ सकता, लेकिन उसने फैसला किया था कि वह बिना रुके चलता रहेगा।
चीकू थोड़ी दूर जाकर रुका। उसने पीछे मुड़कर देखा। धीरू कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा था। चीकू मन ही मन हँसा। "अरे! वह तो अभी तक बहुत पीछे होगा। उसे यहाँ तक पहुँचने में घंटों लग जाएँगे!" चीकू को अपनी जीत का इतना यकीन था कि उसने सोचा, "क्यों न थोड़ी देर आराम कर लिया जाए? फिर मैं आराम से दौड़ पूरी कर लूँगा।" पास ही एक बड़ा और घना पेड़ था जिसकी ठंडी छाया पड़ रही थी। चीकू उस पेड़ के नीचे लेट गया। ठंडी हवा और दौड़ने की थकान ने उसे जल्दी ही नींद की आगोश में ले लिया। वह गहरी नींद में सो गया।
इधर, धीरू अपनी चाल से लगातार चलता रहा। वह जानता था कि वह तेज़ नहीं है, लेकिन वह जानता था कि उसे रुकना नहीं है। उसने न तो इधर-उधर देखा और न ही आराम करने के बारे में सोचा। उसका लक्ष्य केवल फिनिश लाइन तक पहुँचना था। वह धीरे-धीरे, लेकिन लगातार आगे बढ़ता रहा। उसने चीकू को सोता हुआ देखा, लेकिन वह रुका नहीं। उसने सोचा, "उसका सोना मेरे लिए अच्छी बात है, लेकिन मुझे अपनी गति बनाए रखनी है।"
कई घंटों बाद, जब सूरज ढलने लगा, चीकू की नींद खुली। उसने आँखें मलते हुए उठकर देखा। उसे लगा कि वह फिनिश लाइन के पास होगा। लेकिन जब उसने देखा कि वह अभी भी उस पेड़ के नीचे है और फिनिश लाइन काफी दूर है, तो वह घबरा गया। उसने तुरंत दौड़ना शुरू किया। लेकिन जब वह फिनिश लाइन के पास पहुँचा, तो उसने देखा कि धीरू कछुआ पहले ही फिनिश लाइन पार कर चुका था! जंगल के सभी जानवर धीरू के लिए तालियाँ बजा रहे थे और उसे बधाई दे रहे थे।
चीकू शर्मिंदा हो गया। उसका घमंड चूर-चूर हो गया। उसने सीखा कि केवल तेज़ होना ही ज़रूरी नहीं है, बल्कि निरंतर प्रयास और धैर्य भी सफलता के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं। धीरू ने अपनी दृढ़ता और निरंतरता से यह साबित कर दिया था कि धीमी और स्थिर चाल से भी दौड़ जीती जा सकती है। उस दिन के बाद, चीकू ने अपना घमंड छोड़ दिया और धीरू ने सभी को यह सिखाया कि लगन और मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
नैतिक शिक्षा: धीरे और लगातार चलने वाला ही दौड़ जीतता है। घमंड हमेशा हार की ओर ले जाता है, जबकि धैर्य और निरंतरता हमें सफलता दिलाते हैं।
5. ईमानदार लकड़हारा और जलपरी
एक समय की बात है, एक हरे-भरे जंगल के पास एक गरीब लकड़हारा रहता था जिसका नाम रामू था। रामू बहुत ईमानदार और मेहनती था। वह हर दिन जंगल जाता, लकड़ियाँ काटता और उन्हें बेचकर अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी आजीविका पूरी तरह से उसकी पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी पर निर्भर थी। वह अपनी कुल्हाड़ी को बहुत संभाल कर रखता था, क्योंकि वही उसका एकमात्र सहारा थी।
एक दिन, रामू जंगल में एक नदी के किनारे एक बड़े पेड़ को काट रहा था। वह पूरी एकाग्रता से काम कर रहा था, लेकिन पेड़ बहुत पुराना और मज़बूत था। अचानक, जब वह ज़ोर से कुल्हाड़ी चला रहा था, तो लकड़ी का एक टुकड़ा उछला और उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूट गई। कुल्हाड़ी फिसलकर नदी के गहरे पानी में जा गिरी। रामू ने तुरंत नदी में छलांग लगाई, लेकिन नदी बहुत गहरी थी और पानी का बहाव भी तेज़ था। उसकी कुल्हाड़ी पल भर में नदी की तलहटी में गायब हो गई।
रामू बहुत उदास हो गया। वह नदी के किनारे बैठ गया और फूट-फूट कर रोने लगा। "हे भगवान! अब मैं क्या करूँगा? मेरी कुल्हाड़ी ही मेरी कमाई का ज़रिया थी। इसके बिना मैं अपने परिवार का पेट कैसे भरूँगा?" वह अपनी बदकिस्मती पर रो रहा था। उसके आँसू नदी के पानी में गिर रहे थे।
रामू की ईमानदारी और उसकी सच्ची भावनाओं को देखकर, नदी की देवी, एक सुंदर जलपरी, पानी से बाहर निकली। उसके बाल लहरों की तरह बह रहे थे और उसकी आँखें तारों जैसी चमक रही थीं। जलपरी ने रामू से पूछा, "हे भले आदमी! तुम क्यों रो रहे हो?" रामू ने जलपरी को अपनी सारी कहानी बताई। उसने बताया कि कैसे उसकी इकलौती कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है और अब उसके पास काम करने के लिए कुछ भी नहीं है।
जलपरी ने रामू की दुखभरी कहानी सुनी और मुस्कुराई। उसने कहा, "चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मदद करूँगी।" यह कहकर जलपरी फिर से नदी के गहरे पानी में डूब गई। कुछ ही पल बाद, वह पानी से बाहर निकली, और उसके हाथ में एक चमकती हुई **सोने की कुल्हाड़ी** थी। जलपरी ने रामू से पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" रामू ने सोने की कुल्हाड़ी को देखा। वह बहुत सुंदर और कीमती थी। वह जानता था कि यह कुल्हाड़ी उसके पास कभी नहीं हो सकती, क्योंकि वह इतनी अमीर नहीं था। उसने बिना किसी लालच के कहा, "नहीं देवी, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी लोहे की थी।"
रामू की ईमानदारी देखकर जलपरी थोड़ी हैरान हुई। उसने फिर से नदी में डुबकी लगाई। इस बार, वह एक चमकदार **चाँदी की कुल्हाड़ी** लेकर बाहर आई। जलपरी ने फिर पूछा, "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" रामू ने चाँदी की कुल्हाड़ी को भी देखा। वह भी बहुत कीमती थी। लेकिन रामू अपनी ईमानदारी पर अडिग रहा। उसने फिर से कहा, "नहीं देवी, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी बहुत साधारण सी लोहे की थी।"
रामू की ईमानदारी से जलपरी बहुत प्रभावित हुई। उसे ऐसा नेक इंसान पहले कभी नहीं मिला था। उसने तीसरी बार नदी में डुबकी लगाई। इस बार, वह रामू की अपनी पुरानी, जंग लगी हुई **लोहे की कुल्हाड़ी** लेकर बाहर आई। "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" जलपरी ने पूछा। रामू ने अपनी पुरानी कुल्हाड़ी को पहचान लिया। उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने तुरंत कहा, "हाँ, हाँ देवी! यही मेरी कुल्हाड़ी है! आपने मेरी जान बचा ली!"
रामू की सच्चाई और ईमानदारी देखकर जलपरी बहुत प्रसन्न हुई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारी ईमानदारी ने मेरा दिल जीत लिया है। तुम एक नेक इंसान हो। तुम्हारी कुल्हाड़ी तो तुम्हारी है ही, लेकिन तुम्हारी ईमानदारी के इनाम के तौर पर मैं तुम्हें ये सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ भी देती हूँ। ये सभी तुम्हारी हैं।" रामू यह सुनकर बहुत हैरान और खुश हुआ। उसने जलपरी को धन्यवाद दिया और अपनी तीनों कुल्हाड़ियाँ लेकर खुशी-खुशी अपने घर लौट आया। उस दिन के बाद, रामू और उसका परिवार कभी गरीब नहीं रहा। रामू ने सीखा कि ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है, और उसने हमेशा सच्चाई और नेकदिली से काम किया।
नैतिक शिक्षा: ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। ईमानदारी का पुरस्कार हमेशा मिलता है, चाहे वह सीधे न दिखे।
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